डाकू फूलन एक ऐसा नाम जो हर कोई जानता पर इनके बारे में बात करने से डरता है। डाकू फूलन देवी जी शायद ही ऐसा कोई होगा जो इस नाम से आज की तारीख में वाकिफ नहीं होगा। हमारे भारत देश में जब भी डाकू का जिक्र होता है तो उसमे डाकू फूलन देवी का नाम न आये ऐसा हो ही नहीं सकता है। इनके बिना हर डाकू की कहानी अधूरी रह जाती है और डाकू फूलन देवी के बगैर चम्बल भी अधुरा लगता है वीरान लगता है। इनके चर्चे अंतरराष्ट्रीय स्तर तक आज भी होते है। जिनका नाम सुनकर ही लोगो में दहशत हो जाती थी जिनका नाम सुनकर लोगो की रूह तक कांपने लगती थी। इतनी दहशत शायद आज तक किसी डाकू को लेकर नहीं हुई होगी।
जन्म
फूलन देवी जी का जन्म 10 अगस्त सन् 1963 को हुआ था। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के एक छोटे से गोरहा गांव पूर्वा में जन्मी फूलन देवी बचपन में ही काफी तेज थी। इनका जन्म निषाद (मल्लाह) जाति में बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। फूलन देवी के पिता का नाम देवीदीन मल्लाह और माता का नाम मूला देवी था। गोरहा गाँव धीरे धीरे फूलन देवी जी की वजह से सुर्ख़ियों में आया और आगे चलकर खूब प्रसिद्ध भी हुआ। फूलन देवी के पिताजी देवीदीन मल्लाह जी के पास छोटा सा जमीन का हिस्सा था जिससे थोड़ी बहुत वेतन मिलती थी और थोड़ा बहुत नाव वैगरह चला कर परिवार का भरण या पालन-पोषण होता था। परिवार में कुल 6 लोग थे देवीदीन मल्लाह उनकी पत्नी मुला देवी और 4 बच्चे जिसमे फूलन देवी जी सबसे छोटी थी। सबसे बड़ी फूलन देवी की एक बहन थी उसके बाद 2 भाई थे उसके बाद चौथे नंबर पर फूलन देवी जी थी।
फूलन देवी जी की घर की स्थिति बहुत ही ख़राब थी। जीवन जैसे तैसे जीवन व्यतीत हो रहा थी, बेहद ही गरीबी अवस्था में सब बच्चो की परवरिश हो रही थी। एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा जिससे थोड़ी बहुत आमदनी होती थी, जो इनके पास जमीन थी उसके कुछ हिस्सों पर फूलन देवी जी के चाचा ने कब्ज़ा कर कर रखा था। उनके चाचा के कुछ बेटे भी थे जो बड़े थे। फूलन देवी की परवरिश बाकि लड़कियों से बिल्कुल अलग थी। फूलन देवी बाकि लड़कियों की तरह शर्मीली, डरपोक या फिर किसी के दवाब में आकर डर जाये वैसी लड़की नहीं थी। वो बचपन से ही निडर, बहादुर और साहसी थी। वह तुरंत पलटकर किसी के बातों का जवाब दे देती थी, वे किसी से नहीं डरती थी। जितनी भी गालियाँ होती थी वो सब फूलन देवी जी हर उस इन्सान को देती थी जो उनके साथ लड़ाई झगड़े करते थे।
जब फूलन देवी जी 10 साल की थी तब किसी बात को लेकर घर में झगड़ा हुआ था। फूलन देवी जी को पता नहीं था किस बात पर झगड़ा हो रहा है। मां बाप रो रहे थे कुछ समय बाद पता चला कि उनके चाचा ने उनकी जमीन हड़प ली है। अब फूलन देवी सोच रही थी कि आगे जिंदगी कैसे कटेगी और चाचा के लड़के बही बहुत तंग कर रहे हैं। जब फूलन देवी जी को ये सब बात पता चला तो फूलन देवी अपने ही चाचा से और उसके बेटे से भी लड़ गई। अपनी बहन के साथ वहां के स्थानीय पुलिस थाने के बाहर धरने पर बैठ गई थी।
उस वक्त फूलन देवी जी कि उम्र मात्र 10 साल थी, जब फूलन देवी अपने चाचा और उसके बेटे के साथ लड़ी थी। झगडे में फूलन देवी के चाचा के लड़के ने पत्थर से फूलन देवी जी का सर फोड़ दिया तो फूलन देवी ने भी इसके जवाब में अपने चाचा के बेटे पर पत्थर चला दिया था। तो कुछ इस तरह की थी फूलन देवी जी मात्र 10 साल की उम्र में, फिर उसके बाद फूलन देवी जी अपने ही बस्ती के लोगो और लड़को के साथ किसी न किसी बात को लेकर अक्सर लड़ाई होती रहती थी। ये सब लड़ाई झगड़े की खबरे अब फूलन देवी जी के घर तक पहुँचने लगी थी।
जिसको लेकर अक्सर फूलन देवी जी के घर वाले भी बहुत परेशान रहने लगे थे, और जिसको लेकर फूलन देवी और उनके परिवार वालो के बीच भी अक्सर बाते होती थी। फूलन देवी जी को परिवार वाले बहुत समझाते थे लेकिन फूलन देवी नहीं समझती थी। जिस कारण अपने ही परिवार वालो से भी फूलन देवी अक्सर लड़ जाती थी। जिस कारण अपने ही परिवार से अनबन बढ़ रही थी, अच्छे संबंध नहीं थे। फूलन देवी जी के जो भाई थे बहुत ही छोटी उम्र में ही उनकी मौत हो गई थी। अब घर में सिर्फ दो बहने एक फूलन देवी और उसकी एक बड़ी बहन बची थी।जमीन को लेकर फूलन देवी की चाचा के साथ अक्सर लड़ाई होती रहती थी, इसको लेकर कभी कभी अपने पिता जी से भी लड़ जाती थी।
बंधक विवाह
जमीन हड़पने पर चाचा के खिलाफ आवाज उठाने पर सजा के तौर पर पिता ने महज दस साल की उम्र में फूलन की शादी अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दी थी। पहली रात से शुरू हुई अधेड़ उम्र के पति की दरिंदगी को बर्दाश्त न कर सकी और सेहत बिगड़ने पर वह घर छोड़कर भाग निकली लेकिन घरवालों ने उसे दोबारा पति के पास भेज दिया। वह उसकी दरिंदगी सहती रही और बर्दाश्त के बाहर होने पर वह फिर भाग निकली। पति के घर से भागकर वह फिर गांव पहुंची और चाचा के खिलाफ मोर्चा खोला तो चचेरे भाई ने उन्हें जेल भिजवाया, जहां फिर उसे दरिंदगी का शिकार होना पड़ा।
जेल से निकलने के बाद उन्हें अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया तो पुरुषों के विरोध का सामना करना पड़ा। इससे वह चंबल के बीहड़ में छिपकर रहने लगी और डाकुओं की मदद करने लगी, अब वह 18 साल की हो चुकी थी। गिरोह में सरदार बाबू गुज्जर की नियत फूलन देवी पर खराब हुई और फूलन के साथ जबरदस्ती शुरू कर दी। इसपर गिरोह में दूसरे नंबर पर रहने वाले विक्रम मल्लाह ने विरोध किया और जब बाबू नहीं माना तो उसकी हत्या कर दी। इसके बाद विक्रम मल्लाह पर फूलन भरोसा करने लगी और दोनों के बीच संबंध भी बने। उसके बाद जेल से छूटकर आए श्रीराम और लालाराम ने गिरोह में फूट डलवाकर विक्रम की हत्या करवा दी। लालाराम और श्रीराम डाकुओं की मदद से नाराज होकर फूलन को बंधक बना लिया और बेहमई गांव में कैद करके उससे दरिंदगी करते रहे। कई दिन तक उससे सामूहिक दुष्कर्म हुआ और उसे निर्वस्त्र गांव में भी घुमाया गया था। किसी तरह वह उनके चंगुल से छूटकर फिर वह डाकुओं का गिरोह बनाकर हथियार उठा लिया।
फूलन देवी का प्रतिशोध
प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही फूलन को सात महीने बाद मौका मिला और 14 फरवरी 1981 को गिरोह के साथ बेहमई गांव पहुंच गई। यहां हर घर से लोगों को बाहर निकाला और एक कतार में खड़ा कर दिया। उसने बंदूक उठाई और सामने खड़े 21 लोगों को पर ताबड़तोड़ गोलियों से बौछार कर दी थी, जिसमें बीस लोगों की मौत से पूरा देश हिल गया था। बेहमई कांड की गूंज केंद्र से लेकर यूपी और एमपी के विधानसभा में भी सुनाई दी थी। अब दस्यु सुंदरी फूलन गिरोह का खौफ बीहड़ में सुनाई देने लगा था और दो साल तक गिरोह सक्रिय रहा। मौत की सजा न देने और परिवार को कोई नुकसान न पहुंचाने की मांग पर केंद्र सरकार की पहल के बाद 1983 में फूलन ने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री के सामने अपने कई साथियों के साथ समर्पण कर दिया था। फूलन पर 22 लोगों की हत्या, 30 डकैती और 18 अपहरण के आरोप थे और करीब 11 वर्षों तक उसे जेल में रहना पड़ा था। बेहमई कांड का मामला आज भी कानपुर देहात की अदालत में विचाराधीन है।
मृत्यु
यूपी में सपा सरकार में मुलायम सिंह ने 1993 में फूलन पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए और उसे 1994 में जेल से छोड़ दिया गया। जेल से छूटने के बाद फूलन ने उम्मेद सिंह से शादी भी की थी और रिहाई के बौद्ध धर्म अपना लिया था। समाजवादी पार्टी ने फूलन को राजनीतिक मंच दिया और वह वर्ष 1996 में सपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंची। 1998 में हारने के बाद दोबारा वर्ष 1999 में वह एक बार फिर जीत गईं। दिल्ली में रह रही फूलन की 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इससे पहले शेर सिंह ने फूलन के हाथ से बनी खीर भी खाई थी। ऐसा कहा जाता है कि गिरफ्तारी के बाद शेर सिंह ने बेहमई नरसंहार का बदला लेने की बात कही थी। फूलन की जीवनी को बॉलीवुड ने ‘बैंडिट क्वीन’ का नाम दिया और फिल्मी पर्दे पर उतारा था। इस फिल्म का काफी विरोध हुआ था और अपत्ति भी हुई।