भगवान महावीर का जन्म
भगवान महावीर स्वामी का जन्म 599 ई.पू .वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ था। महावीर स्वामी को बचपन में वर्धमान के नाम से जाना जाता था। भगवान महावीर, महान राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो क्षत्रिय वंश के थे और उनकी माता का नाम त्रिशला था। भगवान महावीर की माता वैशाली के लिच्छवी वंश के राजा चेटक की बहन थी। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इनका जन्म मार्च या अप्रैल के महीने में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि महावीर स्वामी का जन्म क्षत्रियकुंड राज्य में हुआ था।
जब रानी त्रिशला गर्भवती थी तब उन्होंने जैन ग्रंथों में 14 सपनों के बारे में पढ़ा था जिसे पढ़कर महान और दयालु पुत्र की प्राप्ति होती हैं। भगवान महावीर के जन्म से पहले रानी त्रिशला को कई प्रकार के सपने आए थे। रानी त्रिशला ने और महाराज सिद्धार्थ ने इन सपनों के बारे में जानना चाहा। जब इन सपनों का मतलब जाना तो पता चला कि दोनों राजा रानी को एक महान पुत्र की प्राप्ति होने वाली है। महात्मा महावीर के माता-पिता जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ के भक्त थे। वर्धमान बचपन में शांत परन्तु एक बहादुर बालक थे। उन्होंने अपनी बहादुरी कई बार दिखाकर अपने परिवार को मुश्किल हालातों से बचाया था। बचपन से ही भगवान महावीर किसी से नहीं डरते थे उनके अंदर एक साहसी और निडर बच्चा हमेशा रहता था जो किसी भी मुसीबत का डटकर सामना करता था। एक ऐसा बच्चा जो साहसी था और मुसीबतों से आसानी से लड़ लेता था।
एक राजकुमार होने के बावजूद भी वह साधारण जीवन जीना पसंद करते थे। अपने माता-पिता की आज्ञा से उन्होंने राजकुमारी यशोदा से शादी कर ली। भगवान महावीर और राजकुमारी यशोदा की एक बेटी भी हुई जिनका नाम प्रियदर्शना रखा गया।
माता- पिता की मृत्यु
जब महावीर 28 साल के थे तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी। माता पिता की मृत्यु के बाद में उनके बड़े भाई ने अपने राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली। वर्धमान के बड़े भाई नंदीवर्धन ने अपने पिता की राजगद्दी संभाली। वर्धमान ने अपने बड़े भाई से आज्ञा ली कि वे घर को छोड़कर कहीं और जाना चाहते है। इस संसार की मोह माया से दूर रहना चाहते हैं वह खुद की खोज करना चाहते हैं।
वर्धमान से भगवान महावीर का सफर
उनके बड़े भाई ने वर्धमान को बहुत मनाया लेकिन वह नहीं माने। 2 साल बाद उन्होंने घर और गृहस्थी को छोड़ दिया। कुछ दिनो बाद वन में जाकर तप और ध्यान करना शुरू कर दिया। कहा जाता है जब भगवान महावीर वन जा रहे थे तब उनके मुंह से “नमो सिद्धाणं” बोलकर एक भगवा कपड़े के साथ जंगल की ओर चले गए। महावीर स्वामी ने अपने जीवन के 12 साल तप किया। इस दौरान उन्होंने शांति प्राप्त की, अपने गुस्से पर काबू करना सिखा, हर प्राणी के साथ उन्होंने अहिंसा की नीति अपनाई। भगवान महावीर जैन समाज के 24वें तीर्थंकर थे।
तीर्थंकर मतलब वो इंसान के रूप में महान आत्मा या भगवान जो कि अपने ध्यान और ईश्वर की तपस्या से भगवान बना हो। किसी भी जैन के लिए महावीर किसी भगवान से कम नहीं है। उनके दर्शन करने को गीता के ज्ञान के समान माना गया। 30 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर त्यागकर लोगों के मन में आध्यात्मिक जागृति के लिए संन्यास ले लिया और अगले साढ़े 12 वर्षों तक उन्होंने गहरा तप और ध्यान किया। तप से ज्ञान अर्जित कर लेने के बाद भगवान महावीर ने पूरे भारतवर्ष में अगले 30 सालों तक जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया।
जिसके बाद वह कई जगह जैन धर्मं का प्रचार करने गए। वे हर जगह की सभ्यता और अच्छी चीज़ों को अपने अन्दर समाते गए। वे उस समय केवल दिन में 3 घंटे ही सोते थे। 12 साल तपस्या करने के दौरान वे बिहार, बंगाल, उड़ीसा और उत्तरप्रदेश भी गए। वहाँ पर उन्होंने जैन धर्म का खुब प्रचार किया।
महावीर स्वामी के उपदेश 
भगवान महावीर ने अहिंसा, तप, संयम, पाच महाव्रत, पाच समिति, तीन गुप्ती, अनेकान्त, अपरिग्रह एवं आत्मवाद का संदेश दिया। महावीर स्वामी जी ने यज्ञ के नाम पर होने वाली पशु-पक्षी तथा नर की बाली का पूर्ण रूप से विरोध किया तथा सभी जाती और धर्म के लोगो को धर्म पालन का अधिकार बतलाया। महावीर स्वामी जी ने उस समय जाती-पाति और लिंग भेद को मिटाने के लिए उपदेश दिये।
मृत्यु
30 वर्ष तक अपने उपदेशों का प्रचार करने के बाद 527 ईसा पूर्व में महात्मा महावीर स्वामी की आधुनिक पटना के निकट पावा नामक स्थान पर मृत्यु हो गई। महात्मा महावीर की मृत्यु के समय उनकी आयु 72 वर्ष थी। उनकी मृत्यु के बाद भी उनका धर्म फलता- फूलता रहा और आज भी विद्यमान है। जैन समाज के अनुसार महावीर स्वामी के जन्म दिवस को महावीर जयंती तथा उन के मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है
भगवान महावीर का आदर्श वाक्य –
मित्ती में सव्व भूएसु।
‘ सब प्राणियों से मेरी मैत्री है।’