नंगेली का नाम केरल के बाहर शायद किसी ने ना सुना हो। किसी स्कूल के इतिहास की किताब में उनका ज़िक्र या कोई तस्वीर भी नहीं मिलेगी। लेकिन उनके साहस और वीरता की मिसाल ऐसी है कि एक बार जानने पर कभी नहीं भूलेंगे। नंगेली के बारे में हर स्त्री को जानना चाहिए क्योंकि नंगेली ने स्तन ढकने के अधिकार के लिए अपने ही स्तन काट दिए थे। केरल एक ऐसी स्त्री जो छोटी जाति की होकर भी राजाओं के साथ अपने स्वाभिमान के लिए लड़ ली। इनकी कहानी को आज तक ना किसी ने सुनाया है और ना ही आज तक किसी ने जानने की कोशिश की है।
स्तन कर’
इतिहास के पन्नों में छिपी ये लगभग सौ से डेढ़ सौ साल पुरानी कहानी है। यह कहानी उस समय की है जब केरल के बड़े भाग में त्रावणकोर के राजा का शासन था। बात उस समय की है जब केरल में जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी थीं और निचली जातियों की महिलाओं को उनके स्तन ना ढकने का आदेश था। उल्लंघन करने पर उन्हें ‘ब्रेस्ट टैक्स’ यानी ‘स्तन कर’ देना पड़ता था। यदि कोई महिला स्तन कर नहीं देती थी तो उसे मार दिया जाता था। केरल में महिलाओं के साथ अत्याचार की सारी हदें पार कर दी थी। ऐसे में एक चमेली ही थी जिन्होंने महिलाओं को इस क्रूरता से आजादी दिलाई अपने साहस और हिम्मत से नंगेली ने सारी महिलाओं को इस अपमान से आजाद कराया। नंगेली के कारण ही महिलाओं में पहली बार ही सही लेकिन एक स्वाभिमान की चिंगारी जलने लगी थी महिलाएं अब स्वाभिमान के साथ जीना चाहती थी
केरल के छेरतला में नंगेली अपने पति चिरुकंदन के साथ रहती थीं। साल 1800 में, जब राजसी शासन चलता था, तब कई तरह के कर वसूले जाते थे। ये ‘कर’ उनकी आमदनी पर केंद्रित नहीं थे बल्कि उनकी ‘नीची जाति’ यानी दलितों पर केंद्रित थे। ब्राह्मण जाति और कई अन्य तथाकथित ऊँची जाति के लोग कई विशषाधिकारों से भरा जीवन व्यतीत करते थे और साथ ही ऊँच-नीच का भेद बना रहे इस कारण कर वसूले जाते थे। दलित जाति की महिलाओं को अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा यानी कि अपने स्तन को ढकने की अनुमति नहीं थी और अगर वो ऐसा करती तो उनसे इस बात का कर वसूला जाता था।
नंगेली एज़हवा जाति की थीं। उनके समुदाय को और अन्य निचली जातियां जैसे थिया, नादर और दलित समुदायों को भी इस कर का भुगतान करना पड़ता था। इसे ‘मुलाकरम’ भी कहा जाता था। कपड़ों पर सामाजिक रीति-रिवाज एक व्यक्ति की जाति की स्थिति के अनुरूप थे, जिसका मतलब था कि उन्हें केवल उनके कपड़े पहनने के तरीके से पहचाना जा सके। इस तरह स्तन-कर का उद्देश्य जाति-संरचना को बनाए रखना था। 550 रियासतों में से त्रावणकोर की इस रियासत ने भी (जो कि ब्रिटिश हुकूमत के अंतर्गत आती थी) इस कर को लगाया था।
नंगेली का साहसी विरोध
नंगेली ने इस बात का पुरज़ोर विरोध किया, उनके विरोध का तरीक़ा था अपने शरीर को ढकना, बिना स्तन कर भरे। ऐसा कर वसूलना, ब्राह्मणिक पितृसत्ता को दर्शाता था कि केवल ब्राह्मण महिलाओं को शरीर ढकने की ज़रूरत है। अन्य महिलाओं का कोई अधिकार नहीं है ख़ुद के शरीर पर क्योंकि उनकी शरीर के साथ वही किया जाता था जो ऊंची जाति के लोग चाहते थे। नंगेली ने इसषबात का विरोध कर साबित किया की ये शरीर उनका है तो नियम भी उनके होंगे और इसे ढकने की इच्छा भी उनकी होगी। उस समय ये साहस तो अतुलनीय था।
जब शासकों के कर वसूलने वाले अधिकारिओं को इस विरोध के बारे में पता चला कि नंगेली किस तरह ख़ुद को ढककर तथाकथित ऊँची जाति व समुदाय के लोगों और उनके इस मनुवादी ढाँचे को भी चुनौती दे रहीं हैं। उन्हें पता चल गया था कि नंगेली किसी भी तरह से स्तन-कर देने से साफ़ मना कर रहीं हैं तब कर वसूलने नंगेली के घर जा पहुंचे। वे एक सुबह आए, उनके स्तनों पर कर लगाने के लिए, उसके आकार और आयामों पर निर्भर करते हुए आंकड़ा बकाया की गणना करने के लिए। लेकिन नंगेली ने तब भी कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया और विरोध करते हुए अपने स्तनों को काट कर एक पत्ते पर कर की तरह वसूलने वालों के सामने रख दिया। जिसके बाद नंगेली की मृत्यु बहुत खून बह जाने के कारण उसी दिन हो गई। नंगेली के पति चिरुकंदन का ये अंतहीन दुःख उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ, जिसके कारण चिरुकंदन ने नंगेली की जलती चिता में कूद कर अपनी भी जान दे दी, इस प्रकार देश में पहली बार कोई पुरुष सती बना!
ब्रेस्ट टैक्स का मक़सद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था. ये एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी।इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था। केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था जिनसे निचले स्तर पर एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा जाता था। आज यदि महिलाएं अपने मर्जी से जीवन जी रही है तो उनका श्रेय सिर्फ नंगेली जैसे महान महिलाओं को जाता है। वह महिला जो स्वाभिमान के साथ जीना चाहती थी और दूसरी महिलाओं को भी स्वाभिमान के साथ जीना सिखा गई ।