Home ताज़ातरीन 3 जून 1995 को सामाजिक परिवर्तन दिवस क्यों मनाते है बहुजन समाज के लोगो

3 जून 1995 को सामाजिक परिवर्तन दिवस क्यों मनाते है बहुजन समाज के लोगो

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3 जून 1995 को सामाजिक परिवर्तन दिवस क्यों मनाते है बहुजन समाज के लोगो

3 जून 1995 सामाजिक परिवर्तन दिवस

#सामाजिक_परिवर्तन_दिवस 14 अप्रैल 1984 को  बहुजन समाज पार्टी  का निर्माण होने के बाद से ही बसपा को मिशन कहकर सम्बोधित किया जाता रहा है, जिसको हर मिशनरी कार्यकर्ता ने अपने जीवन का उद्देश्य समझ कर आगे बढ़ाया है। यह सामान्य अर्थो में राजनीतिक पार्टी कम सामाजिक परिवर्तन व् आर्थिक मुक्ति का मिशन अधिक रहा है । जो भी सामाजिक कार्यकर्त्ता बसपा से जुड़ा, बहुजन आंदोलन का क्रांतिकारी वाहक बन गया। साहस, समझ, शक्ति के अदभुत प्रतीक के रूप में बसपा ने सदियो से सोये हुए बहुजन समाज और खास तौर से भारत के अछूत वर्गो में जबरदस्त  होंसला बदलाव की चाहत, क्षमता व् ऊर्जा का संचार  किया। उनकी सदियोँ से दबी हुई सांगठनिक और  सामाजिक परिवर्तन की चेतना को  यथार्थ के पंख लगा दिए। एक जबरदस्त बदलाव की आंधी चली और एक एक कर के मनुवादी संस्थाये व् उनका वर्चस्व ध्वस्त होता गया । इस  जन जाग्रति आन्दोलन से से हीराचंद ठाकुर, गुरु घासीदास साहेब, जोतिबा फुले, सवित्रीमाइ फुले, अय्योती थासर, अय्यन काली,  साहूजी महाराज, पेरियार, नारायणा गुरु एवं बाबा साहेब जैसे सेंकडो सामाजिक क्रांतिकारियो को राष्ट्रीय पहचान व् मान्यता मिली। बहुजन समाज पार्टी आन्दोलन से भारत का इतिहास, बौध्दिक विमर्श व् राजनीति हमेशा के लिए बदल गई। बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम एक महान सामाजिक परिवर्तक एवं राजनीति के बेजोड़ खिलाड़ी के रूप स्थापित में हो गये। बसपा के पहले दस साल बहुजन समाज के लिए किसी हसीन सपने से कम न थे। अपने गठन के बारहवीं साल 1996 में राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता प्राप्त करके बसपा  भारतीय राजनीति में धूमकेतु बनकर चमकने लगी I बसपा के साथ, बाबा साहेब के संविधान पर चलते हुए भारत सफल लोकतान्त्रिक क्रांति की और मजबूती से बढ़ा, बहुजन समाज अपनी सांगठनिक क्षमता तथा लोकतांत्रिक वैचारिक प्रखरता के साथ असमानता, अपमान व् अत्याचार की बुनियाद पर टिके मनुवाद का अंतिम संस्कार  करने की तैयारी करने लगा I अभी तक हासिये पर रहा समाज भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुँचने के लिए कुलाचें भरने लगा I यह समय भारतीय राजनीति में सामाजिक लोकतंत्र के उदय होने का समय था I बहुजन समाज का राजनैतिक सशक्तिकरण जातीय वर्चस्व से करह रही राजनीति को नई प्राण वायु एवं सामाजिक वैधता प्रदान करती है I सार्वजानिक जीवन के  विभिन्न क्षेत्रो में  बहुजन समाज समय के अनुसार अपनी ऐतिहासिक भूमिका को समझ कर उसका सम्यक निर्वाह करने के लिए तैयार होने लगा I अपनी अचूक रणनीति एवं त्याग बलिदान एवं संघर्ष से ऊँचे महलो की  चारदीवारियो मैं कैद ब्राह्मणवादी नेतृत्व की आराम परस्त राजनीति को बहुजन नायक कांशीराम ने हमेशा के लिए ध्वस्त कर दिया I
3 जून 1995 को इन सपनों को अमली जामा पहना दिया गया और बहुजन समाज की आकांक्षाओ की प्रतीक बहन कुमारी मायावती देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री बनी। यह पिछ्ले कई सौ साल की विलक्षण घटना थी जब बौद्ध समाज ने राजसत्ता को पुनः अपने हाथो में लिया। पुरे देश में ख़ुशी व् उत्सव के माहौल में बहुजन समाज अब कभी न मुड़कर देखने के लिए अपनी ऐतिहासिक मंजिल की तरफ कदम बढ़ा चुका था। बाबा साहेब ने 29 नवम्बर 1949 को नानकचन्द  रट्टू से जो कहा था अब रानी के पेट से नही बल्कि बैलट बॉक्स से शासक पैदा होंगे और महलो वाले सड़को पर व् सड़को वाले महलो में नजर आयेंगे। 3 जून 1995 को यह सही सिद्ध हुआ, जब बहनजी ने जाति व्यवस्था की दो सबसे बड़ी शिकार पहचानो ( जाति  एवं महिला ) के साथ सभी जातिवादी मनुवादियों के मंसूबो को कांशीराम जी के नेतृत्व में नेस्तनाबूद करते हुए पुरे बहुजन समाज को सम्मान के शिखर पर पहुँचा दिया। 1947 के बाद पहली बार बहुजन समाज ने शायद पहली बार महसूस किया की उत्सव उल्लास एवं खुसी की होती है I जो लोग उस एतिहासिक अवसर के साक्षी रहें है वास्तव में वाही उस अवसर की सर्र्थाकता एवं एतिहासिकता को महसूस कर सकते है I मैं उस समय जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञानं में एम ए कर रहा था I पिछले कई दिन से सभी साथी बैचैन थे लेकिन तीन जून की रात को सभी साथी पूरी रत सोये नहीं और इकट्ठा होकर खुशी मानते रहे I जैसे देशभर में सामाजिक परिवर्तन की बयार चलने लगी। राजाओ का तिलक अपने उलटे पॉँव की अंगुली से करने का अहंकार पालने वाले दुर्बुद्धि, बहन जी के पैरो की धूल अपने माथे पर लगाकर अपने जीवन को सफल बनाने के लिए दण्डवत हुए जाते थे। मानो लोकतान्त्रिक संविधान अपने होने का पहला सार्थक उत्सव मना रहा था। इसके बाद तीन बार और बसपा ने बहनजी के नेतृत्त्व में उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बना कर सदी से चले आ रहे सामाजिक गुलामी के दुष्चक्र को तोड़ दिया।अपने सफल कुशल शासक होने का प्रतिमान स्थापित करके मनुवादी दुष्प्रचार को हमेशा के लिए पंक्चर कर दिया I जो आंदोलन बहुजन समाज को सम्मान होंसला एवं सत्ता दिलाने के लिए शुरू हुआ था वर्तमान में केंद्र में बहनजी के नेतृत्व में सरकार बना कर उसको इसकी तार्किक मंजिल तक पहुचना चाहता हैं। जिस समाज को शिक्षा, सम्मान, संपत्ति और शस्त्रों से वंचित होकर हजारो साल तक युद्ध बंदी के रूप में तमाम यातनाये व् आमानवीय अत्याचारों को सहना पड़ा, उसने कभी भी जातिवादी सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के प्रदुषण की गुलामी को स्वीकार नही किया और अपनी स्वतंत्र, मानवतावादी बौद्धिक पहचान को सतत अक्षुण बनाये रखा I बहुजन समाज अपने इसी लोकतान्त्रिक नेतृत्व में भारत को प्रबुद्ध लोकतंत्र बनाने के लिए द्रढ़ता से आगे बढ़ रहा  है  यही आन्दोलन विभिन्न रूप में सामाजिक परिवर्तन, समतामूलक समाज, लोकतान्त्रिक सरकार व् मजबूत राष्ट्र की बुनियाद को पक्का कर रहा है I अगर बहुजन समाज बहनजी को देश का प्रधानमंत्री बनाने में सफल होता है तो यह उसकी राजनैतिक सफलता एवं बड़ी उपलब्धि माना जायेगा I
सही मायनो में आज का दिन 3 जून सामाजिक परिवर्तन दिवस हैं आप सभी साथियों को इस अवसर पर हार्दिक मुबारकबाद I
Raj Kumar                                                                                                                                                                                                                                                      डॉ राजकुमार                                                                                                                      दिल्ली विश्वविद्यालय

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