Home कविता कोश हाशिए पर बेटियां / डॉ. राजकुमारी की कलम से

हाशिए पर बेटियां / डॉ. राजकुमारी की कलम से

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हाशिए पर बेटियां / डॉ. राजकुमारी की कलम से
हाशिए पर बेटियां

हाशिए पर बेटियां

हाशिए पर बेटियां
हाशिए पर बेटियां
हाशिए पर बेटियां
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टूटे कंधे और कटी ज़बान,
वस्त्र, गुप्तांग हैं लहुलुहान
देह पर नाखूनों के निशान
मैं दलित बेबस,बेजुबान।
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दबोची गई गरदन,रीढ़ पर वार
आत्मा की अनसुनी चीत्कार
हिंसक रेप,कटाक्षों की बौछार
जातीय चक्की में पिसते औरतजात।
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चल रहा यहां पर जंगलराज
खुलमखुल्ला घूमे रंगे सियार
मेमने सी कन्याओं को चबाते
 जबड़े  पर ताज़ा लहू के दाग़
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जीवन के दोहरे अभिशाप
भोग रही हैं जातीय कारागार
छातियों पर दंत के गहरे घाव
रीढ़ पर लोहे की रॉड के प्रहार
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मय्यत में भी कोई नहीं अपना
ऑर्डर फॉलोवर,मुजरिम जजमान
कुछ लोभी, चमचे और चाटुकार
मौत के तांडव से  घिरा  श्मशान
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कर देगें नवबलिकाओं के रेप
गुनाह छिपाने की सौ तरकीब
गुंडाराज़ में,बेटियों को तकलीफ़
सत्ता, मीडिया की गोद हैं करीब
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हुक्मरान, प्रशासन और मीडिया
कोई नहीं यहां निर्धन का साथी
हाथरस की बेटी कोर्ट के किवाड़
खटखटा,न्याय पाने को पीटे छाती।
डॉ. राजकुमारी
हिंदी प्रवक्ता

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