तुम झूठ- झूठ चिल्लाते हो
तुम झूठ- झूठ चिल्लाते हो
मैं सच कहने की आदि हूं
तुम लाशों पर भवन बनाते
मैं ढाह देने की अभिलाषी हूं।
तुम कंटक राह बिछातेे हो
मैं प्रेम, सौहार्द की संवादी हूं
तुम अवसरों के लाभ उठाते
मैं नहीं कभी अवसरवादी हूं।।
हत्याओं से रक्त सने हाथ तुम्हारे
मैं बरबादी के जश्न नहीं मनाती हूं
जब जब तुम लहू पिपासु बनते
मैं विश्व शांति दूत बन जाती हूं।
नर मुंड पड़े हों मैदानों में,
दृश्य सहन नहीं कर पाती हूं
खोपड़ियों के ढेर लगाते तुम
मैं क्रांति कीअलख जगाती हूं ।

डॉ राजकुमारी