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मायावती के भतीजे आकाश की हो रही है शादी, परिवार में आएगी डॉक्टर बहू घर में बजेगी शहनाई,

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मायावती के भतीजे आकाश की हो रही है शादी, परिवार में आएगी डॉक्टर बहू घर में बजेगी शहनाई,

बहुजन समाज पार्टी (BSP) चीफ मायावती के घर अब बजने जा रही है शहनाई . उनके भतीजे आकाश आनंद की शादी उन्हीं की पार्टी के दिग्गज नेता राज्यसभा सदस्य डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ की बेटी डॉक्टर प्रज्ञा सिद्धार्थ से होने जा रही है। प्रज्ञा एक डॉक्टर हैं और उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई की है और इस समय एमडी कर रही हैं। वहीं मायावती के भतीजे आकाश आनन्द ने लंदन से एमबीए किया है।.
आकाश आनंद बसपा के नेशनल कोऑर्डिनेटर भी हैं. आकाश लंदन से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA) भी कर चुके हैं. 2017 में वह राजनीति में एंटर किया था

जानिए कौन हैं मायावती के होने वाले समधी

एकतरफ जहां प्रज्ञा पेशे से डॉक्टर हैं तो उनके पिता और मायावती के होने वाले समधी अशोक सिद्धार्थ भी डॉक्टर रहे हैं। उन्होंने 2008 में मायावती के कहने पर सरकारी नौकरी छोड़कर बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। मायावती ने उन्हें 2016 में राज्यसभा भेज था इससे पहले 2009 में अशोक सिद्धार्थ एमएलसी भी थे। मायावती 2007 में जब यूपी की मुख्यमंत्री बनी थी तो प्रज्ञा की मां सुनीता को राज्य महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाया था।

बीएसपी सुप्रीमो मायावती (Mayawati) के भतीजे आकाश आनंद (Akash Anand) की शादी 26 मार्च को होनी है. आकाश की होने वाली पत्नी का नाम प्रज्ञा है.

9 जुलाई को भारत क्यों मनाएगा राष्ट्रीय शोक

जापान दुनिया के सबसे शांतिप्रिय देशों में से एक है लेकिन शांति से भरे देश जापान से कल मन को अशांत कर देने वाली बेहद दुखद खबर आई थी। दरअसल जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को भाषण देते समय गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। शिंजो आबे पर ये जानलेवा हमला जापान के शहर नारा शहर में किया गया, जहां एक इलेक्शन कैंपेन के दौरान हमलावर ने पीछे से उन्हें दो गोलियां मारीं। मिली जानकारी के मुताबिक शिंजो आबे को गोली लगने के बाद उन्हें तुरंत दिल का दौरा भी पड़ा । शिंजो आबे का काफी खून बह जाने के बाद अस्पताल में उन्हें बचाने की काफी कोशिशें हो रहीं थी, लेकिन शिंजो आबे के बचने के कोई संकेत नज़र नहीं आ रहे थे। करीब छह घंटे तक उन्हें बचाने की कोशिश करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि गोली ने शिंजो आबे के दिल में छेद कर दिया था और उनकी गर्दन पर भी गोली लगी थी। 67 साल के शिंजो आबे के हत्यारे को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया।

कौन है शिंजो आबे का हत्यारा

शिंजो आबे को गोली मारने वाले शख्स की पहचान 41 साल के तेत्सुया यामागामी के रूप में हुई है। बताया जा रहा है कि हमला करने के बाद हमलावर तेत्सुया यामागामी घटनास्थल से भागा नहीं और वहीं पर खड़ा रहा। शिंजो आबे के अंगरक्षकों और पुलिस ने उसे घटनास्थल से ही हथियार के साथ गिरफ्तार कर लिया। हमलावर ने पुलिस से पूछताछ में बताया कि वह शिंजो आबे से खुश नहीं था और उनकी हत्या करने के मकसद से हमला किया था। आबे के हमलावर का कहना था कि वो पूर्व प्रधानमंत्री से संतुष्ट नहीं थे। जापानी रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से दावा किया जा रहा है कि हमलावर तेत्सुया यामागामी सेल्फ डिफेंस फोर्स का पूर्व सदस्य था। उसने 2002 से 2005 तक सेल्फ डिफेंस फोर्स में काम किया था।

9 जुलाई को भारत मनाएगा राष्ट्रीय शोक

 

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री पीएम मोदी के करीबी दोस्तों में से एक थे। इस घटना के बाद प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने शिंजो आबे की मौत पर देश में राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। पीएम मोदी ने कहा कि पूर्व प्रधान मंत्री शिंजो आबे के प्रति हमारे गहरे सम्मान के प्रतीक के रूप में, 9 जुलाई 2022 को भारत में एक दिन का राष्ट्रीय शोक मनाया जाएगा।

 

दिलीप कुमार को मिला डॉक्टर अंबेडकर अवार्ड

 

अभिनेता दिलीप कुमार भारतीय सिनेमा जगत के सबसे चमकते सितारे थे। लेकिन कुछ समय पहले ही दिलीप कुमार इस दुनिया को अलविदा कह गए। दिलीप कुमार के मरणोपरांत अंबेडकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। दिलीप कुमार का काजी अवार्ड उनकी पत्नी सायरा बानो द्वारा स्वीकार किया गया। इस अवार्ड को देने के लिए मुंबई में एक समारोह आयोजित किया गया था और इस समारोह में केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने सायरा बानो को ये अवार्ड प्रदान किया। जानकारी के मुताबिक आपको बता दें की प्रख्यात अभिनेता दिलीप कुमार को हाल ही में भारत रत्न डॉक्टर अंबेडकर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था।

डॉक्टर अंबेडकर रोड को लेते हुए सायरा बानो कई बार भावुक होती हुई नजर आई। इस अवॉर्ड को लेते हुए उन्होंने कहा कि मैं इस अवार्ड को दिल से स्वीकार करती हूं। सायरा बानो आगे कहती है कि बाबा साहेब के नाम का सम्मान पाता है दिलीप साहब बहुत खुश हुए होंगे। मैं रामदास आठवले साहब और कैलाश मासूम जी का धन्यवाद अदा करती हैं कि उन्होंने दिलीप साहब को डॉक्टर अंबेडकर अवार्ड के लिए चुना। आपको बता दें कि दिलीप कुमार को भारत सरकार द्वारा दादा साहेब फाल्के पद्म भूषण और पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। दिलीप कुमार काफी लंबे समय से एक बीमारी से जूझ रहे थे लेकिन 7 जुलाई 2021 को दिलीप कुमार इस दुनिया को अलविदा कह गए। पुरस्कार समारोह के दौरान केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस बात का अनुरोध करेंगे कि हिंदी सिनेमा के अभिनेता दिलीप कुमार को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाए।

अवार्ड लेते वक्त सायरा बानो बार-बार भाग को रहेंगे उन्होंने दिलीप कुमार को कोहिनूर बताते हुए कहा की दिवंगत एक्टर दिलीप कुमार को भारत रत्न से भी सम्मानित किया जाना चाहिए। उन्होने कहा कि मुझे लगता है कि वह अब भी हमारे साथ है और वह सब कुछ देख रहे हैं।

 

द्रोपदी मुर्मू का समर्थन क्यों कर रही है बसपा?

द्रोपदी मुर्मू इस नाम के सुर्खियों में आने के बाद अब यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। सोशल मीडिया से इस बात की जानकारी तो आपको मिल ही गई होगी कि द्रोपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार है। इनका नाम इसलिए चर्चा में भी है क्योंकि द्रौपदी मुर्मू पहली आदीवासी महिला है जो भारत की महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं। अब सवाल यह उठता है क्या देश की बनने वाली पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति सिर्फ एक कठपुतली बनकर रह जाएंगी। कहने का मतलब यह है कि क्या सच में द्रोपदी मुर्मू दलितों और आदिवासियों के लिए काम कर पाएंगी। 

द्रोपदी मुर्मू को सभी पार्टियों की तरफ से भरपूर समर्थन मिल रहा है लेकिन सभी की निगाहें देश की सुप्रीमो मायावती के निर्देश पर टिकी थी। बहन जी ने द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का ऐलान किया है। मायावती ने इस समर्थन का ऐलान करते हुए कहा कि आदिवासी समाज बसपा के मूवमेंट का खास हिस्सा है। द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का फैसला इसी कारण लिया गया है। बसपा अध्यक्ष का कहना है उनकी पार्टी ने यह फैसला भाजपा या एनडीए के पक्ष में नहीं लिया गया है।

बसपा सुप्रीमो के फैसले के काफी गंभीर अर्थ निकाले जा रहे हैं लेकिन सच तो यह है कि बहनजी ने एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को इसलिए अपना समर्थन दिया देश को एक सशक्त और मज़बूत महिला राष्ट्रपति मिल सके। आपके बता दें कि बसपा सुप्रीमो ने मयावाती ने सारी अफवाहों से पर्दा उठाते हुए कहा कि हमारी पार्टी ने आदिवासी समाज को अपने मूवमेंट का खास हिस्सा मानते हुए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना समर्थन देने का फैसला किया है।  उन्होने आगे कहा ये फैसला ना किसी पार्टी के विरोध में है और ना ही समर्थन में। पूरे देश को द्रौपदी मुर्मू के समर्थन के लिए बहन जी के एलान का ही इंतजार था जो कि अब पूरा हो चुका है अब जबकि द्रौपदी मुर्मू को देश के एक सशक्त महिला का समर्थन मिल गया है अब देखने में काफी दिलचस्प रहेगा कि क्या द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन पाएंगी?

सच्ची रामायण लिखने वाले : ललई सिंह यादव

 

पेरियार ललई सिंह यादव का जन्म 1 सितम्बर 1911 को गाँव कठारा, जिला कानपुर देहात के एक समाज सुधारक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम ‘लल्ला’ था, लल्ला से ‘ललई’ हुए।

पिता गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता का नाम मूलादेवी था। मूलादेवी उस क्षेत्र के मकर दादुर गाँव के जनप्रिय नेता साधौ सिंह यादव बेटी थीं। ललई सिंह यादव ने 1928 में उर्दू के साथ हिन्दी से मिडिल पास किया।

1929 से 1931 तक ललई यादव फाॅरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में सरदार सिंह यादव की बेटी दुलारी देवी से हुआ। 1933 में वो शशस्त्र पुलिस कम्पनी जिला मुरैना (म.प्र.) में कॉन्स्टेबल पद पर भर्ती हुए। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई की। 1946 में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम करके उसके अध्यक्ष चुने गए।

उन्होंने हिन्दी में ‘सिपाही की तबाही’ किताब लिखी, जिसने कर्मचारियों को क्रांति के पथ पर विशेष अग्रसर किया। उन्होंने ग्वालियर राज्य की आजादी के लिए जनता तथा सरकारी मुलाजिमान को संगठित करके पुलिस और फौज में हड़ताल कराई।

हिंदुओं के धर्म ग्रंथों का अध्ययन

इसके बाद वो स्वाध्याय में जुटे गए। इसी दौरान उन्होंने एक के बाद एक श्रृति स्मृति, पुराण और विविध रामायणें भी पढ़ी। हिन्दू शास्त्रों में व्याप्त घोर अंधविश्वास, विश्वासघात और पाखण्ड से वो बहुत विचलित हुए।

धर्मग्रंथों में ब्राह्मणों की महिमा का बखान और पिछड़े, शोषित समाज की मानसिक दासता के षड़यंत्र से वो व्यथित हो उठे। ऐसी स्थिति में इन्होंने धर्म छोड़ने का मन भी बना लिया। दुनिया के विभिन्न धर्मों का अध्ययन करने के बाद वैचारिक चेतना बढ़ने के कारण वे बौद्ध धर्म की ओर प्रवृत्त हुए।

धर्म शास्त्र पढ़कर उन्हें समझ आ गया था कि बड़ी चालाकी और षड्यंत्र से शोषित (शूद्रों) समाज के दो वर्ग बना दिए गए हैं। एक सछूत-शूद्र, दूसरा अछूत-शूद्र, शूद्र तो शूद्र ही है।

अपने जीवन संघर्ष क्रम में वैचारिक चेतना से लैस होते हुए उन्होंने यह मन बना लिया कि इस दुनिया में मानवतावाद ही सर्वोच्च मानव मूल्य है।

उनका कहना था कि सामाजिक विषमता का मूल, वर्ण-व्यवस्था, जाति-व्यवस्था, श्रृति, स्मृति, पुराण आदि ग्रंथों से ही पोषित है। सामाजिक विषमता का विनाश सामाजिक सुधार से नहीं अपितु इस व्यवस्था से अलगाव में ही समाहित है।

अब तक इन्हें यह स्पष्ट हो गया था कि विचारों के प्रचार-प्रसार का सबसे सबल माध्यम लघु साहित्य ही है। इन्होंने यह कार्य अपने हाथों में लिया।

1925 में इनकी माता, 1939 में पत्नी, 1946 में पुत्री शकुन्तला (11 वर्ष) और 1953 में पिता का देहांत हो गया था। ये अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। क्रान्तिकारी विचारधारा होने के कारण उन्होंने दूसरी शादी नहीं की।

साहित्य प्रकाशन की ओर उन्होंने बहुत ध्यान दिया। दक्षिण भारत के महान क्रान्तिकारी पेरियार ई. वी. रामस्वामी नायकर के उस समय उत्तर भारत में कई दौरे किए थे। ललई यादव इनके सम्पर्क में आए।

पेरियार रामास्वामी नायकर के सम्पर्क के बाद उन्होंने उनकी लिखित ‘रामायण ए टू रीडिंग’ में विशेष अभिरूचि दिखाई। साथ ही उन्होंने इस किताब का खूब प्रचार-प्रसार किया।

1 जुलाई 1968 में पेरियार रामास्वामी नायकर की अनुमति के बाद ललई यादव ने उनकी किताब को हिंदी में छापने की साची।

1 जुलाई 1969 को किताब सच्ची रामायण के छपकर तैयार हो गई थी। इसके प्रकाशन से सम्पूर्ण उत्तर पूर्व और पश्चिम भारत में एक तहलका-सा मच गया।

लेकिन यूपी सरकार ने 8 दिसम्बर 69 को किताब जब्त करने का आदेश दे दिया। सरकार का मानना था कि यह किताब भारत के कुछ नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जान-बूझकर चोट पहुंचाने तथा उनके धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के लक्ष्य से लिखी गई है।

इस आदेश के खिलाफ प्रकाशक ललई सिंह यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस केस की सुनवाई के लिए तीन जजों की स्पेशल फुल बैंच बनाई गई।

तीन दिन की सुनवाई के बाद सच्ची रामायण के जब्त के आदेश को हाईकोर्ट को खारिज कर दिया।

‘सच्ची रामायण’ का मामला अभी चल ही रहा था कि 10 मार्च 1970 में एक और किताब सम्मान के लिए ‘धर्म परिवर्तन करें’ (जिसमें डाॅ. अम्बेडकर के कुछ भाषण थे) और ‘जाति भेद का उच्छेद’ 12 सितम्बर 1970 को सरकार ने जब्त कर लिया।

 

इसके लिए भी ललई सिंह यादव ने एडवोकेट बनवारी लाल यादव के सहयोग से मुकदमें की पैरवी की। मुकदमे की जीत के बाद 14 मई 1971 को यूपी सरकार ने इन किताबों के जब्त के आदेश को निरस्त किया। इसके बाद ललई सिंह यादव की किताब ‘आर्यो का नैतिक पोल प्रकाश’ के खिलाफ , में मुकदमा चला। यह मुकदमा उनके जीवन पर्यन्त चलता रहा।

 

 

 

बुद्ध क्या है?

 

        ईश्वर होना आसान है लेकिन बुद्ध होना कठिन

 

बुद्ध पूजा नहीं है, इबादत भी नहीं है, बुद्ध मूर्ति नहीं है, स्तूप भी नहीं है, बुद्ध ना तो हीनयान में है और ना ही महायान में, बुद्ध अवतार भी नहीं है, ईश्वर भी नहीं है, बुद्ध को बुद्ध की धरती ने ही खारिज किया,बुद्ध केवल और केवल तार्किक बुद्धि को आश्रय देने वाली देह है।

खुद की खोज में लग जाना, सच जैसा भी हो स्वीकार करना, तर्क को धार देना, अंधविश्वास को ठोकर मारना, रूढ़िवादी सोच को खत्म करना और कल्पनाओं को त्याग कर वास्तविकताओं को गले लगाना, बुद्ध तो इसी में है, बोधगया में सिर्फ यादें हैं,बुद्ध तो दिनचर्या है।

बुद्ध ईश्वर को नहीं मानते अतः बुद्ध को ईश्वर ना बनाएँ। बुद्ध तो बुद्ध थे, उसे किसी सीमा अथवा परिधि में बांधना गलत है, बुद्ध त्यागी थे और आजाद भी, बुद्ध इंसान थे और केवल इंसान ही थे, कटु सच कहने की दिलचस्प कला के कलाकार थे बुद्ध, बुद्ध प्रकाश का पर्याय हैं।

शक करना आदत नहीं थी बल्कि सत्य का जरिया था। ना तो अहंकार और ना ही क्रोध, बुद्ध में उपकार और समाधान था, बुद्ध एक राह है, बुद्ध में डिकोडिंग का गुण है, कुछ हासिल करने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है, बुद्ध को भी घर छोड़ना पड़ा,बुद्ध में छटपटाहट थी, बुद्ध में मुस्कुराहट थी, बुद्ध होना मानो गति में होना।

दर्शन पढ़ने वालों के लिए बुद्ध दर्शन है, इतिहास पढ़ने वालों के लिए बुद्ध इतिहास है,संस्कृति पढ़ने वालों के लिए संस्कृति, साहित्य पढ़ने वालों के लिए साहित्य है, धर्म पढ़ने वालों के लिए बुद्ध धर्म है और सताए हुए लोगों के लिए बुद्ध अंतिम गंतव्य, यानी बुद्ध समाधान का पर्याय है, इसके बावजूद बुद्ध ईश्वर नहीं हैं।

बुद्ध से पता चलता है कि सच्चा ज्ञान एक-दो महीने में हासिल नहीं होता, इसके लिए इंसानों को साल दर साल लगातार मेहनत करना पड़ता है। बुद्ध से मालूम होता है कि हमलोग ब्रह्मांड के सबसे योग्य संसाधन हैं,खुद की वास्तविक गहराई को खोजकर खुद ही खुद में बहुमूल्य मोती प्राप्त कर सकते हैं, इसके लिए रामायण, महाभारत, बाइबिल, कुरान और गीता नहीं चाहिए।

बुद्ध आईना है, हमें दिखाने का प्रयास करते हैं कि “तुममें असीम संभावनाएं हैं , तुममें एक और बुद्ध है, जितने लोग हैं उतने बुद्ध हैं, बशर्ते बुद्ध होने के लिए तुम्हें तर्क-वितर्क से गुजरना होगा, त्याग करना होगा, अथक प्रयास करना होगा, खुद में मौजूद मौलिकता को पहचानना होगा, उसके समानांतर खून-पसीना एक करना होगा,तब संभव है बुद्ध का अंश मात्र होना।”

बुद्ध दुखी भी होता है और खुश भी, बुद्ध प्रेम भी करता है और त्याग भी,बुद्ध संघर्ष भी करता है और त्याग भी, बुद्ध गलती भी करता है और महान कार्य भी,बुद्ध सीखता है, खुद में बदलाव लाता है और दुनिया को सच से परिचित करवाता है, बुद्ध पैदा हुआ, जी भरके जिया, दुनिया को राह दिखाया और मर गया, बुद्ध होना आसान है और कठिन भी।

बुद्ध होने का मतलब है जमीनी इंसान होना,बुद्ध होने का मतलब है जिज्ञासाओं का होना, बुद्ध होना मतलब खोजकर्ता होना, बुद्ध होना मतलब सीधा-सरल सच्चा देह का होना, तमाम उठापटक से गुजर कर जो खुद को खोज ले वही बुद्ध है।

सच्चा इंसान हमेशा याद किया जाता है ना कि केवल किसी खास दिन। सच्चा इंसान मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च या स्तूप में नहीं रहता है, सच्चा इंसान दिल में रहता है,बुद्ध सच में हमारे दिल में है। बुद्ध को ईश्वर बनाना ही बुद्ध को खारिज करना है, बुद्ध को खारिज करना ही तर्क को खारिज करना है और जब तर्क खारिज हो जाए तब देह का क्या अस्तित्व ?

बुद्ध जी का अंतिम उपदेश अपने प्रिय शिष्य आनंद को

   ” अत्त दीपो भव ” 

अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो।

नमो बुद्धाय

कौन खतरे में?

 

ना आतंक में, नापाक खतरे में।

गौर करे तो,नाग के अधिकार में खतरे में

इंडोनेशिया में 87 प्रतिशत मुसलमान और मुसलमान 1.74 प्रतिशत हिन्दू, सुरक्षित हैं , खतरे में हैं l

हिन्दुओं के कुल जनसंख्या का 63 प्रतिशत मुसलमान और 6.3 प्रतिशत हिन्दू पर कोई खतरा नहीं है

अरब का घनी धर्म ही खतरनाक है, 98% मुसलिम है l

Vayraur में भी 7 फीसदी फीसदी हिन हिन हैं लेकिन लेकिन सुख सुख से से से से से r हैं हैं हैं हैं हिंदुओं हिंदुओं हिंदुओं को को को कोई कोई कोई कोई को

️ियन

विशाल जनसंख्या का 1 प्रतिशत भी हिंदुओं में खतरनाक नहीं है l

थाइर में 0.02 प्रतिशत हिंदू वंश है, जो खुद को राम केज में रखते हैं।

एक ही भारत है निवास स्थान पर 80 प्रतिशत हिन्दू है, प्रधान, मंत्र, 98% हिस हिंदू_खतरे_में_हैं ?

मुझे तो kay है कि न तो तो हिन तो kirे में r में है r है है r ही t हिंदुत t हिंदुत kturीं हिनthut हिन हिनthut हिन हिन kturीं, व खेती की rurीं, व rastaur, खेती खेती tay, खेती rastaur, खेती rastaur, खेती tay, खेती खेती खेती खेती

और हां, देश का भाईचारा, अमन शांति, तार्किक विज्ञान भी ख़तरे में

उठो, जागो और साम्, जो शक्तिशाली शक्तिशाली से एकता और खतरे के लिए।

अरविंद केजरीवाल के समर्थक ये पोस्ट जरूर पढें कि हकीकत क्या है?? 

 

अरविंद केजरीवाल वह पहला व्यक्ति है जो IRS अधिकारी होते हुए भी 1994 में IMS (Indian Medical Services) में आरक्षण खत्म कराने के लिए दिल्ली के AIIMS के छात्रों के साथ अनशन पर बैठा था!

1990 में मण्डल कमीशन के लागू होने से ओबीसी के आरक्षण पर खार खाए हुआ था। इसने ही यह अफवाह फैलाई थी कि आरक्षण से जो दलित, आदिवासी और ओबीसी लोग भारतीय चिकित्सा सेवा में आ जाते हैं वो इलाज नही कर पाते, रोगियों को मार देते हैं, ऑपरेशन करते हैं तो बैंडेज, रुई, पट्टी, कैंची, धागा आदि मरीज के पेट मे छोड़ देते हैं। तब इस अफवाह के खिलाफ कानपुर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति स्मृतिशेष प्रो. रामनाथ जी ने एक पुस्तक लिखी (किसने, किसका, कितना हक़ मारा?) और उस पुस्तक द्वारा उन्होंने इसके आरोपो का सबूत के साथ खण्डन किया कि रुई, पट्टी, बैंडेज, मरीज के पेट मे आरक्षण वाले नही बल्कि लाखो रुपये डोनेशन देकर पढ़ने वाले सवर्ण डॉक्टर छोड़ते हैं। आप यह पुस्तक सम्यक प्रकाशन से खरीद सकते हैं।

2 अगस्त 2008 को दिल्ली के जेएनयू के ताप्ती होस्टल में केजरीवाल ने आरक्षण विरोधी कार्यक्रम में जाकर आरक्षण के खिलाफ मोर्चा खोलने को लेकर योजना बनाई थी। यह कार्यक्रम यूथ फ़ॉर इक्वलिटी (Youth for Equality) फोरम नामक संगठन द्वारा आयोजित किया था। इस संगठन का गठन 2006 में आरक्षण का विरोध करने के लिए किया गया था। इस घटना पर कई बार डॉ उदित राज ने सवाल उठाया लेकिन केजरीवाल इस पर चुप्पी साधे रहता है।

लोग माहौल बनाने के लिए ट्विटर पर ट्वीट करके प्रश्न पूछते हैं। उसमें सबसे ज्यादा जवाब वही देते हैं जो उससे जुड़े होते हैं। और उस ही के आदमी होते हैं। केजरीवाल (अप्पू) ने 17 दिसंबर 2012 को ट्वीट करके पूंछा था कि “क्या सरकारी नौकरियों की प्रोन्नति में भी दलितों, पिछडो को आरक्षण होना चाहिए?”  जवाब में सभी ने कहा नही होना चाहिए क्योंकि सारे फॉलोवर सवर्ण थे।

अप्रैल 2014 में इंडिया टूडे को दिए साक्षात्कार में केजरीवाल ने कहा था कि आरक्षण सिर्फ एक पीढ़ी को मिलना चाहिए। इसका विरोध यादव शक्ति पत्रिका के संपादक चंद्रभूषण यादव जी ने इस तर्क के साथ किया था कि केजरीवाल चाहता है कि बहुजन समाज के लोग केवल एक पीढ़ी आरक्षण पाएं ताकि वो केवल चपरासी और सफाईकर्मी ही बने रहें। इस पर फिर केजरीवाल ने अप्पू (चुप्पी) साध ली।

जब केजरीवाल ने पहली बार चुनाव लड़ा तो चुनाव चिन्ह झाड़ू मिला तब इसने वाल्मीकि भाईयों को झाड़ू दिखाकर वोट लिया, उन्होंने भी इसे अपना समझ कर वोट दे दिए। यह मुख्यमंत्री बन गया। अब सफाई कर्मियों ने इससे वादा पूरा करने को कहा। तो यह चुप्पी साधे हुए है। वादा था कि ये सत्ता में आकर दिल्ली के 70 हजार नाले गटर की साफ सफाई करने वाले संविदा कर्मियों (Contractual Labour) को नियमित करके सरकारी नौकरी देगा। इसने अभी तक कुछ नही किया।*

ये रहा इसका आरक्षण विरोधी होने का सबूत। चूंकि अब ये व्यक्ति दिल्ली में दलितों, पिछड़ो और आरक्षण पाने वाले अल्पसंख्यकों का भी वोट लिया है इस लिए आरक्षण का विरोध नही करता लेकिन सरकारी नौकरियों की भर्ती भी नही निकालता! सब कुछ  प्राइवेट का प्राइवेट ही है।

अब सबूत सहित जानिए कि केजरीवाल की उत्पत्ति क्यों और कैसे की गई..??

इसको कैसे लांच किया गया..??

दिल्ली में बसपा (BSP) तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जिसने 16% तक वोट भी प्राप्त किए! इनके 7-8 विधायक भी चुने गये। बस जरूरत थी तो दिल्ली में भी एक मुलायम सिंह के आने की। क्योंकि दिल्ली 270 गांव जाट बाहुल्य हैं और 70 गांव गुर्जर बाहुल्य हैं। ऐसी संभावना हो गयी थी कि यदि राष्ट्रीय लोकदल ने जाट गुर्जर समाज को जोड़ लिया तो ये लोग उत्तर प्रदेश की तरह गठबंधन करके लड़ेंगे! भविष्य में दिल्ली हमेशा के लिए भाजपा और कांग्रेस के हाँथो से निकल जायेगी। इस पर मंथन शुरू हुआ।

इस ही मंथन के तहत आरएसएस (RSS) ने OBC के अन्ना को लाकर एक टीम तैयार की जिसमे केजरीवाल, कुमार विश्वास, प्रो. आनंद, किरण बेदी जैसे आरक्षण के घोर विरोधियों की टीम तैयार की गई।  इस टीम ने सबसे पहले लोकपाल का राग छेड़ा और मीडिया को मैनेज करके प्रसिद्धि प्राप्त की।

इसके बाद इन लोगों ने कांग्रेस से मिली-भगत करके पहला वार कॉंग्रेस के घटक दल डीएमके (DMK) पर किया। उन दिनों कांग्रेस से जनता पीड़ित थी। यूपी का सपा-बसपा फैक्टर दिल्ली में काम करने जा रहा था। इन लोगों ने मूलनिवासी बहुजन नेता कनिमोझी और मनमोहन सरकार के मंत्री ए. राजा को फर्जी ढंग से फंसा कर जेल भेज दिया। बाद में ये लोग निर्दोष बरी भी कर दिए गए।

आप सोचेंगे ए. राजा और कनिमोझी ही क्यों? तो भाइयों थोड़ा गहराई में जाइये। यह कनिमोझी भारत के तमिलनाडु के महान नेता क्लाइग्नार करुणानिधि की बेटी हैं। ये वही डीएमके (DMK) के क्लाइग्नार थे जिन्होंने इंदिरा की चलने नही दी और राजीव गांधी और सुप्रीम कोर्ट को घुटने पर लाकर 1993 में तमिलनाडु में SC/ ST/OBC/Minority को 69% आरक्षण देकर 15% बनाम 85% का कांशीराम जी का सपना साकार किया था। राजीव गांधी की बेबसी और अपमान सोनिया गांधी नही भूली थी और इस ही लिए इनको जेल भेजा गया।

इस सब घटना क्रम के बाद केजरीवाल हीरो बन गया और इसको आरएसएस (RSS) ने आम आदमी पार्टी के नाम से लांच कर दिया। सवाल यह है कि इसे पैसा कैसे मिला। केजरीवाल को लांच करने में और अभी तक सारा चंदा और पैसा आरएसएस के अनुषांगिक संगठन ‘विवेकानंद फाउंडेशन’ ने देना शुरू किया। इस संगठन का गठन ही केजरीवाल के लिए किया गया था। इस संगठन का एक सदस्य अजमेर बम ब्लास्ट का आरोपी भी है। इसका सबूत आपको बहुजनो के अंग्रेजी समाचार साइट में मिल जाएगा।

 

यशवंतराव सच बोलते थे

 

आप मे से ज्यादातर लोग बाबा साहब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ( 1891-1956) को जानते होंगे पर आपने कभी उनके पुत्र यशवंतराव अम्बेडकर (1912-1977) का नाम नही सुना होगा। इसका कारण यह है कि यशवंतराव अम्बेडकर ने स्वयं को बहुजन आंदोलन से अलग रखा। वो अपने पिता से खिन्न थे और घर में पिता पुत्र के बीच बहुत विवाद होते थे।

1935 मे माता  रमाबाई की म्रत्यु के बाद विवाद इतना बढा कि बाबा साहब दुखी हो गये और फिर  उन्होने यशवंतराव जी को व्यस्त रखने  के लिये के लिये उनके नाम पे  एक निजी प्रिंटिंग प्रेस खोल दिया। उस प्रिंटिंग प्रेस के संचालन मे यशवंतराव जी ने स्वयं को पूरी तरह झोंक दिया और दूसरे घर मे रहने लगे।

आखिर क्या वजह थी कि बाबा साहब के एकमात्र जीवित पुत्र यशवंतराव अम्बेडकर उनसे नफरत करते थे ? वजह जान के आप भी मानने लगोगे कि यशवंतराव अम्बेडकर का गुस्सा ज़ायज़ था और वो सच बोलता थे।बाबासाहेब का विवाह 1907 मे हुआ था और विवाह के 5 वर्ष बाद 1912 मे यशवंतराव अम्बेडकर जी पैदा हुये थे। यशवंतराव ने अपनी आंखो के सामने अपने तीन भाईयो गंगाधर, रामादेश, राजरत्न और एक बहन इंदु को भूख और बीमारी से दम तोडते देखा वह रोकता था अपने पिता को और कहता था कि क्यूं करते हो व्यर्थ मेहनत। ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे और दिन रात मंदिर मे घुसने के सपने देखेंगे और बाद मे यही हुआ यशवंतराव सच बोलते थे।

यशवंतराव ने देखा कि उसके भाई राजरत्न की लाश को शमशान ले जाने की जगह उसके पिता दलितों के लिये बनाये गये साईमन कमीशन की मीटिंग अटेंड करने चले गये। राजरत्न की लाश को शमशान उसके चाचा और दूसरे लोग ले गये थे।

यशवंतराव ने देखा कि उसके भाई राजरत्न की लाश को ढांकने के कफन के लिये उनके पास पैसा नही था उसने देखा कि  उसकी माता ने अपनी साडी का एक छोटा टुकडा फाड के कफन की व्यवस्था की वह कोसता था अपने पिता को और कहता था कि इन एहसान फरामोश दलितो की भलाई के  लिये क्यूं मेरी माता को रुला रहे हो। ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे और उपवास रखने मे सवर्णों से होड करेंगे और बाद मे यही हुआ। यशवंतराव सच बोलते थे।

यशवंतराव ने बचपन से ही देखा कि किस तरह उसके पिता अपने परिवार को नज़र अंदाज़ करके दलितो के उत्थान के लिये प्रयासरत थे…बाबा साहब सन 1917 से ही अंग्रेज सरकार को भारत मे दलितों को अधिकार दिलाने के लिये हर महीने पत्र लिखते थे.. 1917 से ले के 1947 तक , 30 साल तक लिखे पत्रों का ही असर था कि आजादी देते वक़्त अंग्रेजो ने शर्त रख दी कि  संविधान बाबा साहब से लिखाया जायेगा और दलितों को उनका हक और अधिकार दिया जायेगा।

यशवंतराव ने अपनी आंखो से देखा कि उसका पिता तो स्कोलरशिप पे कोलम्बिया मे पढ रहा है और  मुम्बई जैसे बडे शहर मे अपना खर्च चलाने के लिये उसकी माता गोबर के उपले बना बना के बेचती है..उसने देखा कि उसकी मां अपने बच्चो के इलाज़ के लिये अपने रिश्तेदारो से बार बार वित्तीय सहायता हेतु विनती करती है और रिश्तेदार इधर उधर के बहाने बना के टाल देते हैं

वह कोसता था अपने पिता को और कहता था कि इन एहसान फरामोश दलितो के लिये क्यूं अपने परिवारजनो को दुखी कर रहे हो, ये एहसान फरामोश दलित आपको भूल जायेंगे और दिन रात देवी देवताओ के भजन गायेंगे और बाद मे यही हुआ। यशवंतराव सच बोलते थे।

यशवंतराव ने अपनी आंखो से अपनी माता रमाबाई को सन 1935 मे भूख और बीमारी से दम तोडते देखा। इन सब अनुभवों ने छोटी उम्र मे ही यशवंतराव को दुनिया की कडवी हक़ीकत से वाकिफ करा दिया..वो जानता था कि बाबा साहब चाहे अपनी जान न्योछावर कर  दे दलितों के उत्थान के लिये, ये एहसान फरामोश दलित कभी उनका बलिदान ना समझेंगे। ये गद्दार लोग बाबा साहब को भूल जायेंगे और बढ चढ के जगराता आदि करायेंगे और बाद मे यही हुआ। यशवंतराव सच बोलते थे।

यशवंतराव जानते थे कि यही दलित बाबा साहब की जयंती मे 10 रुपये का चंदा देने मे नाक भौ सिकोडेंगे और मंदिर बनाने के लिये 5000-10,000 रुपये आसानी से देंगे…और बाद मे यही हुआ … यशवंतराव सच बोलते थे।

यशवंतराव जानते थे कि जब किसी शहर मे *बाबा साहब की जयंती मनायी जायेगी तो शहर के 20-30 हजार दलितों में से केवल 100-150 लोग ही जयंती मनाने आयेंगे ताकि कोई उन्हे महार,चमार,भंगी ना समझ बैठे और बाद मे यही हुआ। यशवंतराव सच बोलते थे।

यशवंतराव जानते थे कि आरक्षण का फायदा उठा के यही दलित लोग सबसे पहले अपने लिये केवल गाडी और बंगले का इंतेज़ाम करेंगे और दुसरे दलित भाईयो की परछाई से भी दूर रहेंगे। एक बंगला बन जाने के बाद दुसरे बंगले का इंतेज़ाम करेंगे और दूसरा बंगला बन जाने के बाद तीसरे बंगले का इंतेज़ाम करेंगे। और बाद मे यही हुआ  यशवंतराव सच बोलते थे।

मैं नास्तिक क्यों हूँ – भगत सिंह (1931)

यह भगत सिंह ने लिखा था और यह 27 1931 को रिपोर्ट किया गया था। ईश्वर की रिपोर्ट के अनुसार, कई जन्म के समय और इस संसार के मानव के जन्म के साथ मिलकर संसार में स्थिति स्थिति और वर्ग की स्थिति होगी। यह भी सटीक है। यह भगत सिंह के लेखन की जांच कर रहे हैं।

स्वंतंत्रता सेना बाबा रणधीर 1930-31के बीच लहकौर के सेन्ट्रल सिंह को हिरासत में लिया गया। I किसी भी प्रकार के भगत सिंह कालकोठरी में शुद्धता की उपस्थिति में हों। स्वस्थ होने पर खराब होने पर, “प्रसिद्ध चिकित्सक स्वस्थ होने से स्वस्थ हो गए और स्वस्थ हो गए। ।

एक नया सवाल उठ खड़ा हुआ। मैं सर्वज्ञानी ईश्वर की उपस्थिति में हूं? I कुछ हद तक इस विश्वास है। . मैं एक, और अधिक। कोई भी अधिक होने का दावा नहीं करेगा। यह बीमारी भी है। हा भी मेरे स्वभाव का अंग है। अपने कामरे के बीच में मुझे निरंकुश कहा था। मेरे दोस्त श्री बटुकेश्वर कुमार डौट भी कभी-कभी ऐसा ही करते थे। कई कुछ दोस्तों को, औrir गमthur ray से है कि मैं मैं मैं मैं मैं ही ही अपने अपने अपने r अपने r प प r प प r हूँ हूँ r हूँ हूँ r हूँ हूँ यह बात कुछ हद तक सही है। मैं नहीं करता हूं। इह आहा कहा जा सकता है। नवीनतम अद्यतनों के लिए अद्यतन निश्चय ही अपने विचार पर गर्व है। यह व्यक्तिगत नहीं है। यह हो सकता है। घमण्ड तो स्वयं के अमानवीय गौरव की अधिकता है। क्या यह अमानवीय है, जो नास्तिकता की ओर ले गया था? इस विषय पर चलने वाला ध्वनि सुनाने के बाद चलने वाला विचार क्या है? जो नास्तिकता की ओर ले गया था? इस विषय पर चलने वाला ध्वनि सुनाने के बाद चलने वाला विचार क्या है? जो नास्तिकता की ओर ले गया था? इस विषय पर चलने वाला ध्वनि सुनाने के बाद चलने वाला विचार क्या है? जो नास्तिकता की ओर ले गया था? इस विषय पर चलने वाला ध्वनि सुनाने के बाद चलने वाला विचार क्या है? जो नास्तिकता की ओर ले गया था? इस विषय पर चलने वाला ध्वनि सुनाने के बाद चलने वाला विचार क्या है?

I इस समस्या को हल करने के लिए। यह कैसे सुनिश्चित हो सकता है कि एक व्यक्ति, जो विश्वास में है, अपने व्यक्ति को विश्वास दिलाता है? दो ही rabauth सम सम हैं हैं या फिर अपने ईश्वर के प्रतिद्वंदी व्यक्तित्व या स्वयं को ही ईश्वर कहते हैं। इन स्टेजों में वह नैसर्गिक नहीं है। अपने प्रतिद्वंदी की उपस्थिति को नकारता ही है। बाहरी स्टेज में भी एक सचेत के उपस्थिति को वह है, रोग के रोग के लिए प्रकृति की देखभाल के लिए रोग की देखभाल। . यह अहं है, भाग्य के अनुकूल होने के साथ ही. … मैं वृथाभिमानी हो हूं।

मेरा नैसर्गिकतावाद बिल्कुल भी पैदा नहीं हुआ है। व्यवस्थापक ने लिखा था, मैं एक प्रमाणीकरण दस्तावेज़ था। कम से कम एक प्रकार के संत जैसे अमानवीय अ को पॉल-पोस, जो नकारात्मकता की ओर ले। अन्य गुणों से संबंधित कुछ को मैं ठीक नहीं हूं। पर I अहं पहचान भाव में फोन करने का मौका। भविष्य के बारे में अजीबोगरीब स्वभाव वाला होगा। ठीक है, ठीक है, एक आर्य समाजी। एक आर्य समाज और कुछ भी। अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद डी0 ए0 वी0 स्कूल, लहक में पूरे मामले में. वहाँ सुबह और शाम के भोजन के अतिरिक्त घण्टों गायत्री मंत्र जपानेवाला। अन्न में पूरा भक्त था। बाद में शुरू करें। स्थिर व्यवहारवादी के सवाल है, वह एक भावुक व्यक्ति हैं। उन्हीं उन्हीं मर्यादित वे नर्वस नहीं हैं। ️ ईश्वर️ ईश्वर️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️ इस प्रकार से मेरा गोवध-भ्रमण हुआ। असहयोग के लिए लॉग इन करें में लॉग इन करें। वास्तव में, ️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ विचार️ उसकी️ स्थायी रूप से सुनिश्चित करने के लिए। यह कभी भी ऐसा नहीं था। मरी ईश्वर की उपस्थिति में दृढ़ विश्वास। बाद में क्रांतिकारी पार्टी से जुड़ी। Kay जिस पहले kayras सम सम वे पक पक पक विश होते होते हुए हुए भी ईश ईश ईश ईश khay k को पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते पूछते वे वे k k को वे k k को जब k k k k k k k k k k k k k k k k k k k k जब ️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️ अपना नया जीवन। ईश्वर की महिमा का ज्वर से गान है। 28 जनवरी, 1925 को संपूर्ण भारत में जो ‘दि रिवोल्युशनरी (क्रांतिकारी) पर्चा था, ! प्रशंसा की है। मेरे ईश्वर के विपरीत का भी क्रांतिकारी सिस्टम में काम करता था। काकोरी के सभी कक्षों में रहने वालों ने अपने अंतिम समय में विश्राम किया। रामप्रसिद्ध ‘बिस्मिल’ समाजवाद और साम्यवाद में वृहदनी के अपने राजेन लाह उपनिषद और गीता के श्लोक के उच्चारण की अपनी अभिलाषा कोद न ट्यू। मैंने उन सब में सिर्फ एक ही व्यक्ति को देखा जो कभी प्रार्थना नहीं करता था और कहता था, ” विज्ञान की सूक्ष्मता के बारे में ज्ञान के होने के कारण उत्पन्न होता है। वह भी भोगी निष्क्रियवासन की सजा है। ईश्वर की उपस्थिति को नकारने की बीमारी नहीं है।

इस समय तक एक आदर्शवादी क्रान्तिकारी था। अब तक हमारे पास हैं। अब अपने कन्धों पर काम का समय। यह माईक्रान्तिकारी जीवन का एक चाल चल रहा था। पर्यावरण के हिसाब से चलने वाले खिलाड़ी के हिसाब से चलने वाले लोग हैं। अपने समीकरणों के हिसाब से समीकरणों के विश्लेषण के लिए। और काम शुरू कर रहा है। मेरे विचार अजीबोगरीब होते हैं। ब्लॉग पोस्ट ने ली। न और अधिक रहस्यवाद, न ही अन्धविश्वास असलियत हमारा आधार बना। विश मुझेthauramauthut के अनेक rurch के के kayarे में पढ़ने पढ़ने पढ़ने पढ़ने खूब खूब पढ़ने पढ़ने पढ़ने पढ़ने पढ़ने अराजकतावादी नेता बाकुने को अध्यात्म, कुछ साम्यवाद के पिताक्र्स को, मार अधिक लाइन, त्रात, व लोगों को अध्यात्म, जो देश में क्रांति लाये। ये सभी नवसृजित थे। बाद में ललंभ की स्तम्भ ‘सहज जान’। Movie रहस्यवादी नास्तिकता। 1926 के अंत तक इस बात का विश्वास है कि एक सर्वशक्तिमान परम आत्मा की बात, ब्रह्माण्ड का सृजन ददर्शन और संचालन, एक कोरी बक है। इस विज्ञापन को प्रदर्शित किया गया है। I

मई 1927 में मैं लाहौर में गिरफ्तार हुआ रेलवे पुलिस हवालात में मुझे एक महीना काटना पड़ा। पुलिस अफसरों ने मुझे बताया कि मैं लखनऊ में था, जब वहाँ काकोरी दल का मुकदमा चल रहा था कि मैंने उन्हें छुड़ाने की किसी योजना पर बात की थी, कि उनकी सहमति पाने के बाद हमने कुछ बम प्राप्त किये थे, कि 1927 में दशहरा के अवसर पर उन बर्मों में से एक परीक्षण के लिये भीड़ पर फेंका गया कि यदि मैं क्रान्तिकारी दल की गतिविधियों पर प्रकाश डालने वाला एक वक्तव्य दे दूँ तो मुझे गिरफ्तार नहीं किया जायेगा और इसके विपरीत मुझे अदालत में मुखबिर की तरह पेश किये बेगैर रिहा कर दिया जायेगा और इनाम दिया जायेगा। मैं इस प्रस्ताव पर हँसा यह सब बेकार की बात थी। हम लोगों की भाँति विचार रखने वाले अपनी निर्दोष जनता पर बम नहीं फेंका करते एक दिन सुबह सी० आई० डी० के वरिष्ठ अधीक्षक श्री न्यूमन ने कहा कि यदि मैंने वैसा वक्तव्य नहीं दिया तो मुझ पर काकोरी केस से सम्बन्धित विद्रोह छेड़ने के षडयन्त्र तथा दशहरा उपद्रव में क्रूर हत्याओं के लिये मुकदमा चलाने पर बाध्य होंगे और कि उनके पास मुझे सजा दिलाने व फाँसी पर लटकवाने के लिये उचित प्रमाण हैं उसी दिन से कुछ पुलिस अफसरों ने मुझे नियम से दोनो समय ईश्वर की स्तुति करने के लिये फुसलाना शुरू किया। पर अब मैं एक नास्तिक था मैं स्वयं के लिये यह बात तय करना चाहता था कि क्या शान्ति और आनन्द के दिनों में ही मैं नास्तिक होने का दम्भ भरता हूँ या ऐसे कठिन समय में भी मैं उन सिद्धान्तों पर अडिग रह सकता हूँ। बहुत सोचने के बाद मैंने निश्चय किया कि किसी भी तरह ईश्वर पर विश्वास तथा प्रार्थना मैं नहीं कर सकता। नहीं, मैंने एक क्षण के लिये भी नहीं की। यही असली परीक्षण था और मैं सफल रहा। अब मैं एक पक्का अविश्वासी था और तब से लगातार हूँ। इस परीक्षण पर खरा उतरना आसान काम न था। “विश्वास कष्टों को हलका कर देता है। यहाँ तक कि उन्हें सुखकर बना सकता है। ईश्वर में मनुष्य को अत्यधिक सान्त्वना देने वाला एक आधार मिल सकता है। उसके बिना मनुष्य को अपने ऊपर निर्भर करना पड़ता है। तूफ़ान और झंझावात के बीच अपने पाँवों पर खड़ा रहना कोई बच्चों का खेल नहीं है। परीक्षा की इन घड़ियों में अहंकार यदि है, तो भाप बन कर उड़ जाता है और मनुष्य अपने विश्वास को ठुकराने का साहस नहीं कर पाता। यदि ऐसा करता है, तो इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उसके पास सिर्फ़ अहंकार नहीं वरन् कोई अन्य शक्ति है। आज बिलकुल वैसी ही स्थिति है। निर्णय का पूरा पूरा पता है। एक सप्ताह के अन्दर ही यह घोषित हो जायेगा कि मैं अपना जीवन एक ध्येय पर न्योछावर करने जा रहा हूँ। इस विचार के अतिरिक्त और क्या सान्त्वना हो सकती है? ईश्वर में विश्वास रखने वाला हिन्दू पुनर्जन्म पर राजा होने की आशा कर सकता है। एक मुसलमान या ईसाई स्वर्ग में व्याप्त समृद्धि के आनन्द की तथा अपने कष्टों और बलिदान के लिये पुरस्कार की कल्पना कर सकता है किन्तु मैं क्या आशा करूँ? मैं जानता हूँ कि जिस क्षण रस्सी का फन्दा मेरी गर्दन पर लगेगा और मेरे पैरों के नीचे से तख़्ता हटेगा, वह पूर्ण विराम होगा वह अन्तिम क्षण होगा। मैं या मेरी आत्मा सब वहीं समाप्त हो जायेगी। आगे कुछ न रहेगा। एक छोटी सी जूझती हुई ज़िन्दगी, जिसकी कोई ऐसी गौरवशाली परिणति नहीं है, अपने में स्वयं एक पुरस्कार होगी यदि मुझमें इस दृष्टि से देखने का साहस हो बिना किसी स्वार्थ के यहाँ या यहाँ के बाद पुरस्कार की इच्छा के बिना, मैंने अनासक्त भाव से अपने जीवन को स्वतन्त्रता के ध्येय पर समर्पित कर दिया है, क्योंकि मैं और कुछ कर ही नहीं सकता था। जिस दिन हमें इस मनोवृत्ति के बहुत से पुरुष और महिलाएँ मिल जायेंगे, जो अपने जीवन को मनुष्य की सेवा और पीड़ित मानवता के उद्धार के अतिरिक्त कहीं समर्पित कर ही नहीं सकते, उसी दिन मुक्ति के युग का शुभारम्भ होगा। वे शोषकों, उत्पीड़कों और अत्याचारियों को चुनौती देने के लिये उत्प्रेरित होंगे। इस लिये नहीं कि उन्हें राजा बनना है या कोई अन्य पुरस्कार प्राप्त करना है यहाँ या अगले जन्म में या मृत्योपरान्त स्वर्ग में उन्हें तो मानवता की गर्दन से दासता का जुआ उतार फेंकने और मुक्ति एवं शान्ति स्थापित करने के लिये इस मार्ग को अपनाना होगा। क्या वे उस रास्ते पर चलेंगे जो उनके अपने लिये ख़तरनाक किन्तु उनकी महान आत्मा के लिये एक मात्र कल्पनीय रास्ता है। क्या इस महान ध्येय के प्रति उनके गर्व को अहंकार कहकर उसका गलत अर्थ लगाया जायेगा? कौन इस प्रकार के घृणित विशेषण बोलने का साहस करेगा? या तो वह मूर्ख है या धूर्त। हमें चाहिए कि उसे क्षमा कर दें, क्योंकि वह उस हृदय में उद्वेलित उच्च विचारों, भावनाओं, आवेगों तथा उनकी गहराई को महसूस नहीं कर सकता। उसका हृदय मांस के एक टुकड़े की तरह मृत है। उसकी आँखों पर अन्य स्वार्थों के प्रेतों की छाया पड़ने से वे कमजोर हो गयी हैं। स्वयं पर भरोसा रखने के गुण को सदैव अहंकार की संज्ञा दी जा सकती है। यह दुखपूर्ण और कष्टप्रद है, पर चारा ही क्या है?

एक क्रान्तिकारी के दो गुण गुण गुणी हों। कth -kayrे पू raur ने किसी r प rurम आत rirम आत kir आत अतः कोई भी व व e जो विश विश विश विश विश ktamana उस उस r प उस kirम आत kirम अस के अस ही ही ही ही चुनौती चुनौती चुनौती चुनौती चुनौती चुनौती चुनौती चुनौती ही ही ही ही चुनौती चुनौती चुनौती चुनौती यदि उसके तर्क इतने अकाट्य हैं कि उनका खण्डन वितर्क द्वारा नहीं हो सकता और उसकी आस्था इतनी प्रबल है कि उसे ईश्वर के प्रकोप से होने वाली विपत्तियों का भय दिखा कर दबाया नहीं जा सकता तो उसकी यह कह कर निन्दा की जायेगी कि वह वृथाभिमानी है। यह मेरा अहं था, जो मेरी नास्तिकता की ओर ले गया था। तर्क करने का तरीका संतोषजनक सिद्ध होने के लिए उपयुक्त है I मुझे नहीं। मैं . इस तरह के वातावरण में वातावरण खराब हो जाता है। थोड़ा अन्य लोगों के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए। मैं हूँ। मैं अंतः प्राकृतिक पर विवेक की मदद से खुद को नियंत्रित करता हूं। . कोशिशों का दायित्व है। वातावरण में स्थिति परिवर्तनशील है। कोई भी व्यक्ति, जो भी हो, उसके लिए यह जरूरी है कि वह ऐसा हो, जो वातावरण को मिलते-जुलते हों। वहाँ विज्ञान का महत्व है। विश्व के रहस्य को, प्रेत, परिवार में शामिल होने के लिए सक्षम होने के लिए आवश्यक हैं I अलग-अलग तरह से प्रभावित करने वाले हमको इन-इन-हैं, जो कभी-कभी वैमनस्य और स्टाफ़ का रूप धारण करते हैं। न पूर्व और पश्चिम के दर्शन में भिन्नता है, इसी समय में अलग-अलग मतों में. पूर्व के धर्मों में भी समानता है। भारत में ही बुद्ध और जैन धर्म अलग-अलग हैं, स्वतंत्र आर्यसमाज सनातन धर्म जैसे विरोधी मत और संगठन हैं। अलग-अलग समय का एक शब्दांश विचारकचार्वाक है। पुराने समय में भी चुनौती दी थी। हर व्यक्ति को बोलें। अच्छी तरह से ऐसी बातें हैं जिनके संबंध में भविष्य के संबंध में सुदृढता का पालन करना है,

ट्रस्टी और ट्रस्टी खतरनाक है। इस दिमाग को मूढ जो भी वैध होने का दावा कर रहा हो, वह वैध होगा। तर्कों को तार्किक की पर कैसे करना चाहिए। ////] डेटाबेस को साफ करना और उसकी पहचान को पूरा करना पुन: निर्धारण करना। प्राचीनता विश्वास) विश्वास करते हैं कि एक चेतन परम आत्मा का, जो प्रकृति की गति का ददर्शा और प्रेक्षक है, कोई उपस्थिति नहीं है। प्रकृति में प्राकृतिक गुणों को प्राप्त किया है। डाक विभाग के लिए कोई चेतन शक्ति नहीं है। हमारे हमारे दर्शनशास्त्र है। हम अष्टकों से कुछ प्रश्न करना है।

 

एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी ईश्वर है, विश्वव्यापी सृष्टि की, तो कृपा द्वारा